कलाम को सलाम
यकीन नहीं होता कि कलाम साहब हमें छोड़ गये हैं। मन कभी भी मानने को तैयार नहीं होगा कि कलाम साहब अब हमारे बीच नहीं रहे। जिस विराट व्यक्तित्व ने हमें जीने की कला सिखाई हो, आगे, और आगे बढ़ते रहने का मूल मंत्र दिया हो, जीवन में सहज और सरल बने रहने की शिक्षा दी हो, खुद को कभी छोटा न समझो यह हौसला दिया हो, किताबों से प्यार करना और शिक्षा को विकास का औजार बताया हो, जिसके नेतृत्व में देश को नई राह मिली हो और जिसने अपने हौसलों ने हमें अंतरिक्ष तक पहुंचाया हो ऐसी महान विभूति को हम भला भूल भी कैसे सकते हैं।
जिस मेहनत और लगन से कलाम साहब भारत रत्न बने और फिर देश के प्रथम नागरिक बने ऐसा दूसरा उदाहरण ढंूढे से भी नहीं मिलेगा। कलाम साहब को इसलिए नहीं जाना जाता कि उन्हें बड़ा घराना विरासत में मिला था। उनको विरासत में मिला था कम पढ़े-लिखे पिता का साया और परिवार के कमजोर आर्थिक हालात। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में हिमालय-सी उंचाई पर उनके जैसा असाधारण व्यक्तित्व का मालिक ही पहुंच सकता है। वे मेहनत के बल पर खुद ही इतना उंचा उठे थे कि उनकी ऊंचाई को छूना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। मात्र आठ साल की मासूम उम्र में स्टेशन और बस अड्डे पर अखबार बेचकर परिवार की परवरिश में पिता का हाथ बंटाने वाले मेहनती-साहसी बालक थे कलाम साहब।
कलाम साहब शिखर पर पहुंचने के बाद भी जिस सादगी से जिया वैसी सादगी आज कहीं किसी में भी देखने को नहीं मिलती। याद आता है 2002 की वह जुलाई की महीना जब उन्होंने देश के प्रथम नागरिक के रूप में राष्टपति भवन में प्रवेश किया तब उनके कंधे पर कपड़ों से भरा एक बैग था। राष्ट्रपति भवन में पांच वर्ष बिताने के बाद जब वे वर्ष 2007 में राष्ट्रपति भवन से बाहर निकले तब भी उनके कंधे पर कपड़ों से भरा एक बैग ही था। यही नहीं अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने राष्ट्रपति भवन का मात्र एक कमरा ही प्रयोग किया था, बाकी कमरों में उन्होंने ताला डलवा दिया था।
कलाम साहब को जहां बच्चे बहुत प्यारे थे वहीं बजुर्गों के लिए भी उनके दिल में असीम सम्मान था। देश के भविष्य युवाओं को उन्होंने आगे बढ़ते रहने के लिए अनेक मंत्र दिये। वे सोचते थे कि जितना युवा आगे बढ़ेगा, देश भी उतना ही आगे बढ़ेगा। सफलता के लिए मेहनत को मूलमंत्र बताते हुए वे युवाओं से कहते थे कि भगवान भी मेहनत करने वाले की ही मदद करता है। वे कहते थे कि मुश्किलों से डरो मत, उनका डटकर सामना करो, मुश्किलें स्वतः ही हल हो जाएंगी। वे छात्रों से कहते थे कि अपनी जिज्ञासा को सोने मत दो ,उसे जाग्रत रखो। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए वे हम सबसे कह गये हैं कि बच्चो के भविष्य के लिए चलो हम अपना आज कुर्बान करें।
दार्शनिक व्यक्तित्व के धनी कलाम साहब की नजर में नेतृत्व ऐसा होना चाहिए जिसमें दूरदर्शिता के साथ-साथ जुनून भी हो। जो बड़ी से बड़ी समस्या से भी विचलित न हो बल्कि डटकर सामना करने की क्षमता रखता हो। वे कहते थे कि नेता को ईमानदारी से अपना काम करना चाहिए। देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने में वे माता-पिता और शिक्षक की भूमिका को अहम् मानते थे। वे यह सब तब कहते हैं जब उन्होंने ईमानदारी को कभी छोड़ा नहीं और भ्रष्टाचार उनको कभी छू तक नहीं सका।
अपने आखिरी शब्दों में भी कलाम साहब हम सबको ‘आल फिट’ की सीख देकर गए हैं। उनके अंतिम शब्दों में छुपे मतलब को समझ कर उसे आत्मसात कर जीवन में अपनाने की जरूरत है। जैसे महात्मा गांधी के अंतिम शब्द ‘हे राम’ हमें आज भी याद हैं और रहेंगे ठीक वैसे ही कलाम साहब के अंतिम शब्द ‘आल फिट’ कालजयी रहेंगे। मेरा अपना मानना है कि जैसे महात्मा गांधी की समाधि पर ‘हे राम’ लिखा है ठीक वैसे ही कलाम साहब की समाधि पर ‘आल फिट’ लिखा जाना चाहिए।
आइये, हम सब मिल कर उनके बताये रास्ते पर चलने और उनके सपनों का देश बनाने का संकल्प लें, यही कलाम साहब के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। तहलका न्यूज परिवार की और से प्रकाश के पुंज, अदम्य साहसी कलाम साहब को शत् शत् नमन के साथ अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
यकीन नहीं होता कि कलाम साहब हमें छोड़ गये हैं। मन कभी भी मानने को तैयार नहीं होगा कि कलाम साहब अब हमारे बीच नहीं रहे। जिस विराट व्यक्तित्व ने हमें जीने की कला सिखाई हो, आगे, और आगे बढ़ते रहने का मूल मंत्र दिया हो, जीवन में सहज और सरल बने रहने की शिक्षा दी हो, खुद को कभी छोटा न समझो यह हौसला दिया हो, किताबों से प्यार करना और शिक्षा को विकास का औजार बताया हो, जिसके नेतृत्व में देश को नई राह मिली हो और जिसने अपने हौसलों ने हमें अंतरिक्ष तक पहुंचाया हो ऐसी महान विभूति को हम भला भूल भी कैसे सकते हैं।
जिस मेहनत और लगन से कलाम साहब भारत रत्न बने और फिर देश के प्रथम नागरिक बने ऐसा दूसरा उदाहरण ढंूढे से भी नहीं मिलेगा। कलाम साहब को इसलिए नहीं जाना जाता कि उन्हें बड़ा घराना विरासत में मिला था। उनको विरासत में मिला था कम पढ़े-लिखे पिता का साया और परिवार के कमजोर आर्थिक हालात। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में हिमालय-सी उंचाई पर उनके जैसा असाधारण व्यक्तित्व का मालिक ही पहुंच सकता है। वे मेहनत के बल पर खुद ही इतना उंचा उठे थे कि उनकी ऊंचाई को छूना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। मात्र आठ साल की मासूम उम्र में स्टेशन और बस अड्डे पर अखबार बेचकर परिवार की परवरिश में पिता का हाथ बंटाने वाले मेहनती-साहसी बालक थे कलाम साहब।
कलाम साहब शिखर पर पहुंचने के बाद भी जिस सादगी से जिया वैसी सादगी आज कहीं किसी में भी देखने को नहीं मिलती। याद आता है 2002 की वह जुलाई की महीना जब उन्होंने देश के प्रथम नागरिक के रूप में राष्टपति भवन में प्रवेश किया तब उनके कंधे पर कपड़ों से भरा एक बैग था। राष्ट्रपति भवन में पांच वर्ष बिताने के बाद जब वे वर्ष 2007 में राष्ट्रपति भवन से बाहर निकले तब भी उनके कंधे पर कपड़ों से भरा एक बैग ही था। यही नहीं अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने राष्ट्रपति भवन का मात्र एक कमरा ही प्रयोग किया था, बाकी कमरों में उन्होंने ताला डलवा दिया था।
कलाम साहब को जहां बच्चे बहुत प्यारे थे वहीं बजुर्गों के लिए भी उनके दिल में असीम सम्मान था। देश के भविष्य युवाओं को उन्होंने आगे बढ़ते रहने के लिए अनेक मंत्र दिये। वे सोचते थे कि जितना युवा आगे बढ़ेगा, देश भी उतना ही आगे बढ़ेगा। सफलता के लिए मेहनत को मूलमंत्र बताते हुए वे युवाओं से कहते थे कि भगवान भी मेहनत करने वाले की ही मदद करता है। वे कहते थे कि मुश्किलों से डरो मत, उनका डटकर सामना करो, मुश्किलें स्वतः ही हल हो जाएंगी। वे छात्रों से कहते थे कि अपनी जिज्ञासा को सोने मत दो ,उसे जाग्रत रखो। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए वे हम सबसे कह गये हैं कि बच्चो के भविष्य के लिए चलो हम अपना आज कुर्बान करें।
दार्शनिक व्यक्तित्व के धनी कलाम साहब की नजर में नेतृत्व ऐसा होना चाहिए जिसमें दूरदर्शिता के साथ-साथ जुनून भी हो। जो बड़ी से बड़ी समस्या से भी विचलित न हो बल्कि डटकर सामना करने की क्षमता रखता हो। वे कहते थे कि नेता को ईमानदारी से अपना काम करना चाहिए। देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने में वे माता-पिता और शिक्षक की भूमिका को अहम् मानते थे। वे यह सब तब कहते हैं जब उन्होंने ईमानदारी को कभी छोड़ा नहीं और भ्रष्टाचार उनको कभी छू तक नहीं सका।
अपने आखिरी शब्दों में भी कलाम साहब हम सबको ‘आल फिट’ की सीख देकर गए हैं। उनके अंतिम शब्दों में छुपे मतलब को समझ कर उसे आत्मसात कर जीवन में अपनाने की जरूरत है। जैसे महात्मा गांधी के अंतिम शब्द ‘हे राम’ हमें आज भी याद हैं और रहेंगे ठीक वैसे ही कलाम साहब के अंतिम शब्द ‘आल फिट’ कालजयी रहेंगे। मेरा अपना मानना है कि जैसे महात्मा गांधी की समाधि पर ‘हे राम’ लिखा है ठीक वैसे ही कलाम साहब की समाधि पर ‘आल फिट’ लिखा जाना चाहिए।
आइये, हम सब मिल कर उनके बताये रास्ते पर चलने और उनके सपनों का देश बनाने का संकल्प लें, यही कलाम साहब के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। तहलका न्यूज परिवार की और से प्रकाश के पुंज, अदम्य साहसी कलाम साहब को शत् शत् नमन के साथ अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।